Thermal Power Plant
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ऊष्मीय शक्ति संयंत्र (thermal power station) वह विद्युत उत्पादन संयंत्र है जिसमें प्रमुख घूर्णी (प्राइम मूवर) वाष्प से चलता है जो कोयला, गैस आदि को जलाकर एवं पानी को गर्म करके प्राप्त की जाती है। इस संयंत्र में शक्ति का परिवर्तन (कन्वर्शन) रैंकाइन चक्र (Rankine cycle) के आधार पर काम करता है।
थर्मल पावर का उत्पादन किस प्रकार किया जाता है?
परंपरागत थर्मल पावर स्टेशन में पानी को गर्म करने के लिए ईंधन का प्रयोग किया जाता है जिससे उच्च दाब पर भाप बनती है। इससे बिजली पैदा करने के लिए टरबाइनें चलाई जाती हैं। पावर स्टेशनों के मध्य भाग में जेनेरेटर होता है जो एक ऐसी घूमने वाली मशीन है जो, चुम्बकीय क्षेत्र तथा कंडक्टर के बीच सापेक्ष गति पैदा करके यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। जेनेरटर को घुमाने के लिए ऊर्जा स्रोत भिन्न-भिन्न होता है। यह मुख्यतया आसानी से उपलब्ध होने वाले ईंधन तथा प्रयुक्त प्रौद्योगिकी के प्रकार पर निर्भर करता है।
थर्मल पावर संयंत्रों को प्रयुक्त ईंधन के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है
न्यूक्लियर पावर संयंत्रों में भाप टरबाइन जेनेरेटर को चलाने के लिए न्यूक्लियर रिएक्टर की ऊष्मा का प्रयोग होता है।
फॉसिल ईंधन पावर संयंत्रों में भाप टरबाइन जेनेरेटर का भी प्रयोग किया जाता है या प्राकृतिक गैस संयंत्रों में दहन टरबाइन का प्रयोग किया जा सकता है।
जिओथर्मल पावर संयंत्रों में भूमिगत तप्त चट्टानों से निकली भाप का प्रयोग किया जाता है
नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों में गन्ने, नगर ठोस अपशिष्ट, लैंडफिल मीथेन या अन्य प्रकार के बायोमास से उत्पन्न कचड़े से ईंधन तैयार किया जा सकता है।
एकीकृत इस्पात मिलों में धमन भट्टी निकास गैस कम लागत की होती है हालांकि यह कम ऊर्जा- घनत्व ईंधन वाली होती हैं।
औद्योगिक प्रक्रियाओं से निकली अपशिष्ट ऊष्मा कभी-कभी इतनी संकेंद्रित हो जाती है कि उसका प्रयोग विद्युत ऊपादन के लिए और प्रायः भाप बॉयलर और टरबाइन के लिए किया जाता है।
कोयला आधारित विद्युत संयंत्र
जब बिजली के उत्पादन के लिए कोयले का प्रयोग किया जाता है तो आम तौर पर पहले इसका चूरा बनाया जाता है और तब बॉयलर युक्त फर्नेस में जलाया जाता है। फर्नेस की ऊष्मा बॉयलर के पानी को भाप में बदल देती है और तब इसका प्रयोग टरबाइन चलाने के लिए किया जाता है। ये टरबाइने जेनेरेटरों को घूमाती है और बिजली पैदा करती है। समय के साथ-साथ इस प्रक्रिया की तापगतिकी दक्षता में सुधार हुआ है। ""मानक"" भाप टरबाइनें कुछ उन्नत सुधार के साथ पूरी प्रक्रिया के लिए लगभग 35औ की सर्वाधिक उन्नत तापगतिकी दक्षता प्राप्त कर चुकी हैं जिसका अर्थ है कि कोयला ऊर्जा की 65औ अपशिष्ट ऊष्मा आसपास के पर्यावरण में छोड़ी जाती है। पुराने कोयला विद्युत संयंत्र विशेष रूप से अति प्राचीन संयंत्र में बहुत कम दक्षता वाले हैं और अपशिष्ट ऊष्मा का बहुत अधिक स्तर पर उत्पादन करते हैं। विश्व की लगभग 40औ बिजली कोयले से प्राप्त होती है।
कोयला आधारित ऊष्मीय शक्ति संयंत्र का योजनामूलक चित्र
1. प्रशीतन टॉवर (Cooling tower)10. वाष्प नियंत्रण वाल्व19. सुपर हीटर2. Cooling water pump11. High pressure steam turbine20. Forced draught (draft) fan3. transmission line (3-phase)12. Deaerator21. Reheater4. Step-up transformer (3-phase)13. Feedwater heater22. Combustion air intake5. Electrical generator (3-phase)14. Coalconveyor23. Economiser6. Low pressure steam turbine15. Coal hopper24. Air preheater7. Condensate pump16. Coal pulverizer25. Precipitator8. Surface condenser17. Boiler steam drum26. Induced draught (draft) fan9. Intermediate pressure steam turbine18. Bottom ash hopper27. Flue gas stack
विद्युत उत्पादन के उपोत्पाद
विद्युत संयंत्र प्रचालन के उपोत्पादों पर डिजाइन और प्रचालन दोनों ही दृष्टियों से विचार करना आवश्यक है। विद्युत चक्र की सुनिश्चित दक्षता के कारण अपशिष्ट ऊष्मा प्रायः कूलिंग टावर का प्रयोग करके, या नदी अथवा झील के पानी का कूलिंग मीडियम के रूप में प्रयोग करके वातावरण में छोड़ी जाती है। फॉसिल ईंधन के जलने से उत्पन्न ईंधन गैस वायु में छोड़ी जाती है ; इसमें कार्बन डाइ-आक्साइड और जलवाष्प, तथा अन्य पदार्थ जैसे नाइट्रोजन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड और (कोयला संयंत्रों के मामले में) उड़न राख तथा पारा रहता है। कोयला चालित बॉयलरों से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट राख को हटा दिया जाता है। इस राख का निर्माण सामग्री के रूप में पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
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